कबीरदास के अनमोल दोहे - 7

कागा काको धन हरे, कोयल काको देय।

मीठे वचन सुनाय के, जग अपनो कर लेय॥1॥


बहुत गई थोरी रही, व्याकुल मन मत होय।

धीरज सब को मित्र है, करी कमाई न खोय॥2॥


जीव हने हिंसा करे, प्रकट पाप सर होय।

पाप सबन को देखया, पुन्य न देखा कोय॥3॥


सब काहूँ का लीजिए, साँचा शब्द निहार।

पक्षपात नहीं कीजिए, कहे कबीर विचार॥4॥


सब इस एक में ही है, डाल पात फल फूल।

कबिरा पाछे क्या रहा, गह पकड़ी जब मूल॥5॥


जागन में सोवन करे, सोवन में लौ लाय।

सूरत डोर लागी रहे, तार टूट नहीं जाय॥6॥


पत्ता टूटा डाल से, ले गई पवन उड़ाय।

अब के बिछड़े न मिलें, दूर पड़े हैं जाय॥7॥


माया छाया एक सी, विरला जाने कोय।

भागत के पीछे लगे, सन्मुख आगे होय॥8॥


प्रेम छिपाय न छिपे, जा घट परगट होय।

जो मुख बोले नहीं, नैन देत हैं रोय॥9॥


प्रेम न बारी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाए।

राज परजा जेहि रूचे, सीस देहि ले जाए॥10॥


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