रसलीन के अनमोल दोहे

रसलीन (१६८९-१७५०) का पूरा नाम सैयद गुलाम नबी था। ये हरदोई जिला के प्रसिद्ध कस्बा बिलग्राम के रहने वाले थे।

अमिय हलाहल मदभरे, सेत स्याम, रतनार।

जियत मरत झुकि-झुकि परत, जेहि चितवत इक बार॥1॥


मुकुत भए घर खोए कै, कानन बैठे जाय।

घर खोजत हैं और को, कीजे कौन उपाय॥2॥


बारन निकट ललाट यों, सोहत टीका साथ।

राहू गहत महु चंद पै, राख्यो सुरपति हाथ॥3॥


मुख छबि निरख चकोर अरु, तन पानिप लखि मीन।

पद पंकज देखत भँवर, होत नयन रसलीन॥4॥


चंद्रमुखी जूरो चितै, चित लीन्हो पहचानि।

सीस उठायो है तिमिर, ससि को पीछे जानि॥5॥


मुकुर बिमलता, चंद दुति, कंज मृदुलता पाय।

जनम लेइ जो कंबु तें, लहै कपोल सुभाय॥6॥


तिय उसास पिय बिरह तें उससि अधर लौं आइ।

कछु बाहर निकसति कछुक, भीतर को फिरि जाइ॥7॥


गवन समय पिय के कहति, यौं नैनन सों तीय।

रोवन के दिन बहुत हैं, निरखि लेहु खिन पीय॥8॥


लाल एक दृग अगिन तें, जारि दियो सिव मैन।

करि ल्याये मो दहन को, तुम द्ववै पावक नैन॥9॥


देह दिपति छ्बि गेह की, किहि बिधि बरनी जाय।

जा लखि चपला गगन तें, छिति फरकत निज आय॥10॥


रसलीन » मुख्यपृष्ठ » अन्य पृष्ठ: [1]