पीपा के अनमोल दोहे

गढ गागरोन के शासक खिची नरेश पीपाराव का जन्म १३८० में राजस्थान में कोटा के निकट हुआ था। पिता के देहांत के बाद संवत १४०० में पीपाराव गागरोन के राजा के रूप में राज्याभिषेक हुआ। दैवीय प्रेरणा से पीपा गुरु की तलाश में काशी के संतश्रेष्ठ जगतगुरु रामानन्दाचार्य जी की शरण में आ गए जेआईएनएचओएनई पीपाराव को गागरोन जाकर प्रजा सेवा करते हुए भक्ति करने व राजसी संत जीवन व्यतित करने का आदेश दिया।

जो ब्रहमंडे सोई पिंडे, जो खोजे सो पावै।

पीपा प्रणवै परम ततु है, सतिगुरु होए लखावै॥1॥


काया देवा काया देवल, काया जंगम जाती।

काया धूप दीप नइबेदा, काया पूजा पाती॥2॥


काया के बहुखंड खोजते, नवनिधि तामें पाई।

ना कछु आइबो ना कछु जाइबो, रामजी की दुहाई॥3॥


अनत न जाऊं राजा राम की दुहाई।

कायागढ़ खोजता मैं नौ निधि पाई॥4॥


हाथां सै उद्यम करैं, मुख सौ ऊचरै राम।

पीपा सांधा रो धरम, रोम रमारै राम॥5॥


उण उजियारे दीप की, सब जग फैली ज्योत।

पीपा अन्तर नैण सौ, मन उजियारा होत॥6॥


पीपा जिनके मन कपट, तन पर उजरो भेस।

तिनकौ मुख कारौ करौ, संत जना के लेख॥7॥


जहां पड़दा तही पाप, बिन पडदै पावै नहीं।

जहां हरि आपै आप, पीपा तहां पड़दौ किसौ॥8॥


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