गंगाधर के अनमोल दोहे

कवि गंग (गंगाधर, 1538-1625) उत्तरप्रदेश के इटावा जिले के एकनार गाँव के निवासी, बादशाह अकबर के दरबारी कवि थे। गंगाधर जी बड़े ही स्वाभिमानी, स्पष्ट नीति के व्यक्ति और अकबर, बीरबल , रहीम, मानसिंह और टोडरमल जैसी महान हस्तियों के समकालीन थे। मुगल बादशाह जहाँगीर को कवि गंग की स्पष्टवादिता राज़ न आई थी और उन्हें मृत्युदंड (हाथी से कुचलवा) दिया था।

कबहुँ न भडुआ रन चढ़े, कबहुँ न बाजी बंब।

सकल सभाहि प्रनाम करि, बिदा होत कवि गंग॥1॥


सीखे कहाँ नवाब जू, ऐसी दैनी दैन।

ज्यों-ज्यों कर ऊँचौं कियौं, त्यों-त्यों नीचे नैन॥2॥


एक हाथ घोड़ा और एक हाथ खर।

कहना था सो कह दिया, अब करना है सो कर॥3॥


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