नाभादास के अनमोल दोहे

परिखा प्रति चहुँदिसि लसति, कंचन कोट प्रकास।

बिबिधा भाँति नग जगमगत, प्रति गोपुर पुर पास॥1॥


अनंतानंद कबीर सुखा, पद्मावती नरहरि।

पीपा भावादास रैदास घना, सेन सुरसुर धरहरि॥2॥


भक्त भक्ति भगवंत गुरु, चतुर नाम बपु एक।

इनके पद बंदन किएँ, नासत बिघ्न अनेक ॥3॥


मंगल आदि विचार रहि, वस्तु न और अनूप।

हरि जन को जस गावते हरिजन मंगल रूप॥4॥


संतन निरने कियो माथि, श्रुति पुराण इतिहास।

भजिबे को दोई सुघर के, हरि के हरिदास ॥5॥


अग्रदेव आग्या दई भक्तन को जस गाऊ।

भवसागर के तरन को नाहिंन और उपाउ ॥6॥


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