मलुकदास के अनमोल दोहे

राम नाम जिन जानिया, तेई बड़े सपूत।

एक राम भजन बिन, कागा फिरे कपूत॥1॥


सोइ पूत सपूत है,जो भक्ति करे चित लाय।

जरा मरन तें छूटि परै, अजर अमर होइ जाय॥2॥


गाँठी सत्त कुपीन में, सदा फिरै निःसंक।

नाम अमल माता रहै, गिनै इन्द्र को रंक॥3॥


मक्का मदीना द्वारिका, बदरी और केदार।

बिना दया सब झूठ हैं, कहै मलूक बिचार॥4॥


जो दुखिया संसार में, खोवो तिनका दुःख।

दलिहर सोंप मलूक को, लोगन दीजै सुख॥5॥


प्रभुता ही को सब मरो, प्रभु को मरै न कोय।

दो कोई प्रभु को मरै, तो प्रभुता दासी होय॥6॥


राम नाम एक रती, पाप के कोटि पहाड़।

ऐसी महिमा नाम की, जारि करै सब छार॥7॥


अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।

दास मलूका कह गए, सब के दाता राम॥8॥


दाया करै, धरम मन राखै, घर में रहै उदासी।

अपना सा दुख सबका जानै, ताहि मिलै अविनाशी॥9॥


साहिब मिल साहिब भये, कछु रही न तमाई।

कहैं मलूक तिस घर गये, जहूँ पवन न जाई॥10॥


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