फ़िराक़ गोरखपुरी के अनमोल दोहे

नया घाव है प्रेम का जो चमके दिन-रात।

होनहार बिरवान के चिकने-चिकने पात॥1॥


बन के पंछी जिस तरह भूल जाय निज नीड़।

हम बालक सम खो गए, थी वो जीवन-भीड़॥2॥


फ़िराक़ गोरखपुरी » मुख्यपृष्ठ » अन्य पृष्ठ: