काम परेई जानिए, जो नर जैसो होय।
बिन ताये खोटो खरो, गहनो लखै न कोय॥1॥
अपनी प्रभुता को सबै, बोलत झूठ बनाय।
बेश्या बरस घटावही, जोगी बरस बढ़ाय॥2॥
खल निज दोष न देखई, पर दोषहि लागि।
लखै न पग-तर सब लखै, परबत बरती आगि॥3॥
दुरभर उदार न दीन को, होत न तन संताप।
तौ जन-जन कौ को सहत, तरजन गरजन ताप॥4॥
फीकी पै नीकी लगै, कहिए समय विचारि।
सबको मन हर्षित करै, ज्यों विवाह में गारि॥5॥
जहां चतुर नाहिंन तहां, मूढ़न को व्यवहार।
बर-पीपर बीन हो रहे, ज्यों अरंड अधिकार॥6॥
कुल बल जैसों होय सो तैसी करि है बात।
बनिक पुत्रा जाने कहा गढ़ लैबे की घात॥7॥
करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान॥8॥
झूठ बिना फीकी लगै, अधिक झूठ दुख भौन।
झूठ तितौ की बोलिये, ज्यों आटे में लौन॥9॥
फेर न ह्वै हैं कपट सों, जो कीजे ब्यौपार।
जैसे हाँडी काठ की, चढ़ै न दूजी बार॥10॥