सरहपा के अनमोल दोहे

पंडिअ सअल सत्थ बक्खाणइ, देहहि बुध्द बसंत ण जाणइ॥।

तरूफल दरिसणे णउ अग्घाइ, पेज्ज देक्खि किं रोग पसाइ॥1॥


एव सरह भणइ खबणाअ मोक्ख महु किम्मि न भावइ।

तत्त रहिअ काया ण ताव पर केवल साहइ॥2॥


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