ध्रुवदास के अनमोल दोहे

ध्रुवदासजी सहारनपुर के रहने वाले थे। इनका जन्म सं. १६२२ माना जाता है। अल्प वय में ही गृहस्थ से विरक्त होकर ये वृन्दावन में वास करने लगे थे। आरम्भ से इनका एक ही मनोरथ था कि मैं कृपाभिसिक्त वाणी से प्रेम-स्वरूप श्री श्यामा-श्याम के अद्भुत, अखंड प्रेम-विहार का वर्णन करूँ।

मिथ्या लालच जगत सुख, सवहिं दुख को धाम।

इक रस नित आनंदमय, सत्य श्याम को नाम॥1॥


ललित नाम नामावली जेक उर झलकंत।

जाके हिय में बसत रहैं स्यामा स्यामल कंत॥2॥


प्रेम सिन्धु के रतन ये अद्भुत कुँवरि के नाम।

जाकी रसना रटै ध्रुव सो पावै सुख धाम॥3॥


बहु बीती थोरी रही, सोऊ बीती जाय।

हित ध्रुव बेगि विचारि कै बसि बृंदावन आय॥4॥


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