गुरुनानक के अनमोल दोहे

कीटा अंदर कीटु करि, दोसी दोसु धरे।

‘नानक’ निर्गुणी गुणु करे, गुणवंतिया गुणु दे॥1॥


आपे माछी मछुली, आपे पाणी जालु।

आपे जाल मणकड़ा, आपे अंदर लालु॥2॥


करमी आवै कपड़ा, नदरी मोखु दुआरू।

नानक एवै जाणीऐ, सभु आपे सचिआरू॥3॥


पहिला नाम खुदा का, दूजा नाम रसूल।

तीजा कलमा पढ़ि नानका, दरगाह परे कबूल॥4॥


दिहटा नूर मुहम्मदी दिहटा नबी रसूल।

नानक कुदरत देखकर सुदी गयो सब भूल॥5॥


गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं गुरमुखि रहिआ समाई।

गुरू ईसरू गुरू गोरखु बरमा, गुरू पारबती माई॥6॥


हुकमैं अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ।

नानक हुकमै जे बुझै त हउमै कहै न कोइ॥7॥


नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार।

जो शरधा कर सेव दे, गुर पार उतारन हार॥8॥


मन मूरख अजहूं नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।

नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥9॥


मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।

अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥10॥


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