सोहत संग समान को, इहै क़हत सब लोग।
पैन पीक ओठन बने, कजर नैनन जोग॥1॥
इक भीजे चहले परे, बुड़े बहे हजार।
कितो न औगुन जग करत, नै वै छड़ती बार॥2॥
गोरे मुख पै तिल बन्यो, ताहि करौं परनाम।
मानो चंद बिछाइकै, पौढ़े सालीग्राम॥3॥
नीकी लागि अनाकनी, फीकी परी गोहारि।
तज्यो मनो तारन बिरद, बारक बारनि तारि॥4॥
कब को टेरत दीन ह्वै, होत न स्याम सहाय।
तुम हूँ लागी जगत गुरु, जगनायक जग बाय॥5॥
सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि सैल पर आतपु परयौ प्रभात॥6॥
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ॥7॥
जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥8॥
रंच न लखियति पहिरि यौं कंचन-सैं तन बाल।
कुँभिलानैं जानी परै उर चम्पक की माल॥9॥
मिलि चंदन बेंदी रही, गोरे मुख न लखाइ।
ज्यों-ज्यों मद लाली चढ़े, त्यों-त्यों उभरत जाइ॥10॥