बिहारीलाल के अनमोल दोहे - 6

अंग-अंग नग जगमगत,दीपसिखा सी देह।

दिया बढ़ाए हू रहै, बड़ौ उज्यारौ गेह॥1॥


प्रगट भए द्विजराज कुल, सुबस बसे ब्रज आइ।

मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ॥2॥


नाहिंन ये पावक प्रबल, लूऐं चलति चहुँ पास।

मानों बिरह बसंत के, ग्रीषम लेत उसांस॥3॥


इन दुखिया अँखियान कौं, सुख सिरजोई नाहिं।

देखत बनै न देखते, बिन देखे अकुलाहिं॥4॥


अधर धरत हरि के परत, ओंठ, दीठ, पट जोति।

हरित बाँस की बाँसुरी, इंद्र धनुष दुति होति॥5॥


बामा भामा कामिनी, कहि बोले प्रानेस।

प्यारी कहत लजात नहीं, पावस चलत बिदेस॥6॥


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