अनमोल दोहे
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परसराम के अनमोल दोहे
कर्म रोग कटियों बिना, नहीं मुक्ति सुखजीव।
चौरासी में ‘परसराम’ दुखिया रहे सदीव॥1॥
लोभ घटावै मान कूं, करै जगत अधीन।
धर्म घाटा मिशटल करै, करै बुद्धी को हीन॥2॥
ऐसे श्रवण सुनत हुइ, सुनो ग्यान बिग्यान।
पीछे धारो परसराम, आत्म अंतर ध्यान॥3॥
परसराम
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