गरीबदास के अनमोल दोहे

गरीब प्रपट्टन की पीठ में, प्रेम प्याले खूब।

जहाँ हम सद्गुरु ले गया, मतवाला महबूब॥1॥


गरीब गाड़ी बाहो धर रहो, खेती करो खुशहाल।

साईं सर पर रखिये, तो सही भक्ति हरिलाल॥2॥


सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर।

दास गरीब सतपुरुष भजो, अविगत कला कबीर॥3॥


अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार।

सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजन हार॥4॥


हम है अमर अचल अनरागी, शब्द महल में तारी लागी।

दास गरीब हुक्म का हेला, हम अविगत अदली का चेला ॥5॥


हमरे अनहद बाजे बाजे, हमरे किये सभे कुछ साजे ।

हम ही लहर तरंग उठावे, हम ही प्रगट हम छिप जावे॥6॥


अनन्त कोटि अवतार हैं, माया के गोविन्द।

कर्ता हो हो अवतरे, बहुर पड़े जग फंन्द॥7॥


माया काली नागिनी, अपने जाये खात।

कुण्डली में छोड़ै नहीं, सौ बातों की बात॥8॥


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