अमीर ख़ुसरो के अनमोल दोहे

एक नारि के है दो बालक, दोनों एकहि रंग।

एक फिरे एक ठाढ़ा रहे, फिर भी दोनों संग॥1॥


गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस।

चल ख़ुसरो घर आपने सांझ भई चहुं देस॥2॥


मोह काहे मन में भरे, प्रेम पंथ को जाए।

चली बिलाई हज्ज को, नौ सो चूहे खाए॥3॥


एक थाल मोती से भरा, सबके सिर पर औंधाा धरा।

चारों ओर वह थाली फिरे, मोती उससे एक न गिरे॥4॥


बात की बात, ठठोली की ठठोली।

मरद की गाँठ, औरत ने खोली॥5॥


सबकी पूजा एक सी, अलग-अलग है रीत।

मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत॥6॥


खुसरो ऐसी पीत कर, जैसे हिन्दू जोय।

पूत पराए कारने, जल जल कोयला होय॥7॥


पौन चलत वह देह बढ़ावे, जल पीवत वह जीव गँवावे।

है वह प्यारी सुंदर नार, नार नहीं पर है वह नार॥8॥


खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार।

जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार॥9॥


खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।

तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग॥10॥


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