खुसरो मौला के रूठते, पीर के सरने जाय।
कह खुसरो पीर के रूठते, मौला नहीं होत सहाय॥1॥
श्याम सेत गोरी लिए, जनमत भई अनीत।
इक पल में फिर जात हैं, जोगी काके मीत॥2॥
अंगना तो परबत भया, देहरी भई बिदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस॥3॥
साजन ये मति जानियो, तोहे बिछड़त मोको चैन।
दिया जलत है रात में, और जिया जलत दिन रैन॥4॥
पंखा हो कर मैं डुली, साती तेरा चाव।
मुझ जलती का जनम गयो, तेरे लेखन भाव॥5॥
रैन बिना जग दुखी है, और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी, और दुखी दरस बिन नैन॥6॥
नदी किनारे मैं खड़ा, सो पानी झिलमिल होय।
पी गोरो मैं सांवरी, अब किस विध मिलना होय॥7॥
खुसरो पाती प्रेम की, बिरला बांचे कोय।
बेद कुरान पोथी पढ़े, प्रेम बिना न होय॥8॥
आ साजन मेरे नैनन में, सो पलक ढांप तोहे दूं।
न मैं देखूं औरन को, न तोहे देखन दूं॥9॥
अपनी छवि बनाय के, मैं तो पी के पास गयी।
जब छवि देखि पीहूं की, सो अपनी भूल गयी॥10॥