गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत॥1॥
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥2॥
बिट्टीए मइ भणिय तुहुँ मा कुरु बुङ्की दिट्ठि।
पुत्तिा सकर्णी भल्लि जिवँ मारइ हियइ पविट्ठिड्ड॥3॥
दोनों दाँतन पर धरेनि, जिमि हम लीन उठाय।
वैसै नित रक्षा करौं, दीन भाव ह्वै जाय॥4॥
पीथल सूं मजलिस गई तानसेन सूं राग।
हंसबो रमिबो बोलबो गयो बीरबर साथ॥5॥
उर प्रतीति दृढ़, सरन है, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर करै, सब काम सफल हनुमान॥6॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करै सनमान।
तेहि के कारज सकल सुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥7॥
तूलसी वृक्ष ना जानिए, गाय ना जानीयै ढौर।
माता पिता मनुष्य ना जानिए, यै तिनो नन्द किशोर॥8॥
राम नाम सब कोई कहे, दशरथ कहे न कोय ।
एक बार दशरथ कहे तो, कोटि यज्ञ फल होय ॥9॥
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋद्धि पति, सिद्धि पति करों दूर क्लेश॥10॥