नव रसमय मूरति सदा, जिन बरने नंदलाल।
आलम आलम बस कियो, दै निज कविता जाल॥1॥
चलती चकिया देखि के, हंसा कमाल ठठाय।
कीले सहारे जो रहा, ताहि काल न खाय॥2॥
अवधू रहिया हाटे वाटे रूप विरष की छाया।
तजिवा काम क्रोध लोभ मोह संसार की माया॥3॥
जो मैं ऐसा जाणती, प्रीत किये दुःख होय।
नगर ढिंढोरा फेरती, प्रीत न कीज्यो कोय॥4॥
उसका मुख इक जोत है, घूँघट है संसार।
घूँघट में वो छिप गया, मुख पर आँचर डार॥5॥