अन्य/अज्ञात के अनमोल दोहे - 2

नव रसमय मूरति सदा, जिन बरने नंदलाल।

आलम आलम बस कियो, दै निज कविता जाल॥1॥


चलती चकिया देखि के, हंसा कमाल ठठाय।

कीले सहारे जो रहा, ताहि काल न खाय॥2॥


अवधू रहिया हाटे वाटे रूप विरष की छाया।

तजिवा काम क्रोध लोभ मोह संसार की माया॥3॥


जो मैं ऐसा जाणती, प्रीत किये दुःख होय।

नगर ढिंढोरा फेरती, प्रीत न कीज्यो कोय॥4॥


उसका मुख इक जोत है, घूँघट है संसार।

घूँघट में वो छिप गया, मुख पर आँचर डार॥5॥


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