अन्य/अज्ञात के अनमोल दोहे - 1

गुरु की पारस दृष्टि से, लोह बदलता रूप।

स्वर्ण कांति-सी बुद्धि हो, ऐसी शक्ति अनूप॥1॥


गरीब सम्मन से सतगुरु कहे, सेऊ आया नाहि।

देही तो शूली धरी, शीश ताक के माहिं॥2॥


गरीब सम्मन से सतगुरु कहे, नेकी मन आनन्द।

शीश काटि धर में धरया, मात पिता धन्य धन्य॥3॥


बावन अक्षर सप्त स्वर, गल भाषा छत्तीस।

इतने ऊपर जो कथे, तो मानूं कवि ईश॥4॥


परशुराम को चारु चरित, मेटत सकल अज्ञान।

शरण पड़े को देत प्रभु, सदा सुयश सम्मान॥5॥


गणपति गिरिजा पुत्र को सुमरूं बारम्बार।

हाथ जोड़ विनती करूं शारदा नाम आधार॥6॥


सुने सुनावे प्रेम वश पूजे अपने हाथ।

मन इच्छा सब कामना पुरे गुरु मच्छिन्द्रनाथ ॥7॥


अगम अगोचर नाथ तुम पारब्रह्मा अवतार।

कानन कुण्डल सिर जटा अंग विभूति अपार ॥8॥


सिद्ध पुरुष योगेश्वरी दो मुझको उपदेश।

हर समय सेवा करूँ सुबह शाम आदेश ॥9॥


आदि-नाथ आकाश-सम, सूक्ष्म रुप ॐकार।

तीन लोक में हो रहा, आपनि जय-जय-कार॥10॥


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