अनमोल दोहे
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सम्मन के अनमोल दोहे
निकट रहे आदर घटे, दूरि रहे दु:ख होय।
‘सम्मन’ या संसार में, प्रीति करौ जनि कोय॥1॥
समन चहौ सुख देह कौ, तौ छाँड़ौ ये चारि।
चोरी चुगली जामिनी, और पराई नारि॥2॥
सम्मन मीठी बात सों, होत सबै सुख पूर।
जेहि नहिं सीखो बोलिबो, तेहि सीखो सब धूर॥3॥
सम्मन
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