मुंज के अनमोल दोहे

मुंज मालवा के राजा थे जो पराक्रमी, रसिक और साहित्य प्रेमी भी थे। वाकपति मुंज परमार राजा थे जो सीयक द्वितीय के दत्तक पुत्र थे। मुंज ने 'श्री वल्लभ', 'पृथ्वी वल्लभ', 'अमोघवर्ष' आदि उपाधियां धारण की थीं। राजा भोज, मुंज के भतीजे थे।

भोलि मुद्धि मा गब्बु करि, पिक्खिवि पुडगु पाईं।

चउदसइं छहुत्तरइं, मुज्जह मयह गंवाईं॥1॥


झाली तुट्टी किं न मुउ, किं न हुएउ छर पुंज।

हिंदइ दोरी बँधीयउ जिम मंकड़ तिम मुंज॥2॥


मुंज भणइ, मुणालवइ! जुब्बण गयुं न झूरि।

जइ सक्कर सय खंड थिय तो इस मीठी चूरि॥3॥


जा मति पच्छइ संपजइ, सा मति पहिली होइ।

मुंज भणइ, मुणालवइ, बिघन न बेढइ कोइ॥4॥


बाह बिछोड़बि जाहि तुहँ, हउँ तेवइँ का दोसु।

हिअयट्ठिय जइ नीसरहि, जाणउँ मुंज सरोसु॥5॥


एउ जम्मु नग्गुहं गिउ, भड़सिरि खग्गु न भग्गु।

तिक्खाँ तुरियँ न माणियाँ, गोरी गली न लग्गु॥6॥


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