गंगादास के अनमोल दोहे

बाराह रूप के दरश हो, निशि बासर मोहिं जान।

गंगादास है नाम मम, तुम से कहूँ बखान॥1॥


गंगादास कह मूढ़, समय बीती जब रोए।

दाख कहां से खाय, पेड़ कीकर के बोए॥2॥


गंगादास बेगुरू पते पाये न घर के।

वो पगले हैं आप, जो पाप देखें पर के॥3॥


मंदमती जड़ मूढ़, करे निंदा जो पर की।

बाहर भरमें फिरे, डगर भूले निज घर की॥4॥


गंगादास » मुख्यपृष्ठ » अन्य पृष्ठ: