भिखारी दास के अनमोल दोहे

प्रतापगढ़ को रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि आचार्य भिखारीदास जन्मस्थली माना जाता है। ये प्रतापगढ नरेश के भाई हिंदूपतिसिंह के आश्रय में रहे

श्रीमाननि के भौन में, भोग्य भामिनी और।

तिनहूँ को सुकियाह में, गनैं सुकवि सिरमौर॥1॥


कंस दलन पर दौर उत, इत राधा हित जोर।

चलि रहि सकै न स्याम चित, ऐंच लगी दुहुँ ओर॥॥2॥


तुलसी गंग दुवौ भए ।

सुकविन के सरदार॥3॥


जान्यौ चहै जु थोरे ही, रस कविता को बंस ।

तिन्ह रसिकन के हेतु यह, कान्हों रस सारंस॥4॥


केसरिया पट कनक-तन, कनका-भरन सिंगार।

गत केसर केदार में, जानी जाति न दार॥5॥


होत मृगादिक तें बडे बारन, बारन बृंद पहारन हेरे।

सिंदु में केते पहार परे, धरती में बिलोकिये सिंधु घनेरे॥6॥


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