रसखान के अनमोल दोहे

प्रेम अगम अनुपम अमित, सागर सरिस बखान।।

जो आवत एहि ढिग बहुरि, जात नही रसखान।॥1॥


दम्पति सुख अरु विषय रस, पूजा निष्ठां ध्यान।।

इन हे परे बखानिये, सुद्ध प्रेम रसखान।॥2॥


देख्यो रुप अपार मोहन सुन्दर स्याम को।

वह ब्रज राजकुमार हिय जिय नैननि में बस्यो॥3॥


ए सजनी लोनो लला, लह्यो नंद के गेह।

चितयो मृदु मुसिकाइ के, हरी सबै सुधि गेह॥4॥


जेहि बिनु जाने कछुहि नहिं, जान्यों जात बिसेस।

सोई प्रेम जेहि जानिके, रहि न जात कछु सेस॥5॥


प्रेम फांस में फँसि मरे, सोई जिये सदाहिं।

प्रेम-मरम जाने बिना, मरि कोउ जीवत नाहिं॥6॥


नैन दलालनि चौहटें, मन मानिक पिय हाथ।

रसखान ढोल बजाईके, बेच्यौ हिय जिय साथ॥7॥


हरि के सब आधीन पै, हरी प्रेम आधीन।

याही ते हरि आपु ही, याहि बड़प्पन दीन॥8॥


प्रेम प्रेम सब कोऊ कहत, प्रेम न जानत कोई।

जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोई॥9॥


भूले वृथा करि पचि मरौ ,ज्ञान गरूर बढ़ाय।

बिना प्रेम फीको सबै ,कोटिन कियो उपाय॥10॥


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