अनमोल दोहे
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रत्नावली देवी के अनमोल दोहे
सत्य सरस बानी रतन, सील लाज जे तीन।
भूषन साजति जो सती, सोभा तासु अधीन॥1॥
पति के सुप सुष मानती, पति दुष देषि दुषाति।
रतनावलि धनि द्वैत तजि, तिय पिय रूप लषाति॥2॥
रत्नावली देवी
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