अनमोल दोहे
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रूपसाहि के अनमोल दोहे
रीति काल के कवि रूपसाहि पन्ना के रहने वाले थे
लालन बेगि चलौ न क्यों बिना तिहारे बाल।
मार मरोरनि सो मरति करिए परसि निहाल॥1॥
जगमगाति सारी जरी झलमल भूषन जोति।
भरी दुपहरी तिया की भेंट पिया सों होति॥2॥
रूपसाहि
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