जो पावै अति उच्च पद, ताको पतन निदान।
ज्यौं तपि-तपि मध्यान्ह लौं, अस्तु होतु है भान॥1॥
जो जाको गुन जानही, सो तिहि आदर देत।
कोकिल अंबहि लेत है, काग निबौरी लेत॥2॥
मनभावन के मिलन के, सुख को नहिंन छोर।
बोलि उठै, नचि नचि उठै, मोर सुनत घन घोर॥3॥
सरसुति के भंडार की, बडी अपूरब बात।
ज्यौं खरचै त्यौं-त्यौं बढै, बिन खरचे घटि जात॥4॥
निरस बात सोई सरस, जहाँ होय हिय हेत।
गारी प्यारी लगै, ज्यों-ज्यों समधिन देत॥5॥
जुआ खेले होता है, सुख-संपत्ति कौन नाश।
राज-काज नल तैं छूट्यौ, पांडव किय बनवास॥6॥
सरस्वति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात।
ज्यों खरचै त्यों-त्यों बढ़ै, बिन खरचै घट जात॥7॥
जैसे बंधन प्रेम कौ, तैसो बन्ध न और।
काठहिं भेदै कमल को, छेद न निकलै भौंर॥8॥
ओछे नर के पेट में, रहै न मोटी बात।
आध सेर के पात्र में, कैसे सेर समात॥9॥
सोई अपनी आपने, रहे निरंतर साथ।
होत परायो आपनी, गयो पराये हाथ ॥10॥