अनमोल दोहे
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वृंददास के अनमोल दोहे - 4
पिय के विछुरै बिरह बस मन न कहूँ ठहरात।
धरति गिरतु बीचहिं फिरतु पयों भँभूरे पात॥1॥
बड़े विपता में हूँ करै भले बिराने काम।
किय विराट काम तनु की विजय, अर्जुन करि संग्राम॥2॥
बिन स्वारथ कैसे सहे, कोऊ करुवे बैन।
लात खाय पुचकारिये, होय दुधारू धैन॥3॥
वृंददास
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