मलुकदास के अनमोल दोहे - 2

साधु मंडली बैठि के, मूढ़ जाति बखानी।

हम बड़ि हम बड़ि करि मुए, डूबे बिन पानी॥1॥


कह मलूक जब ते लियो, राम नाम की ओट।

सोवत हो सुख नींद भरि, डारि भरम की वोट॥2॥


सुंदर देही पाइ कै, मत कोइ करै गुमान।

काल दरेरा खायगा, क्या बूढ़ा क्या जवान॥3॥


हरी डारि ना तोड़िए, लागै छूरा बान।

दास मलूका यों कहै, अपना-सा जिव जान॥4॥


जो तेरे घर प्रेम है, तो कहि कहि न सुनाव।

अंतर्जामी जानिहै, अंतरगत का भाव॥5॥


जोरू-लड़के खुस किये, साहेब बिसराया।

राह नेकी की छोड़िके, बुरा अमल कमाया॥6॥


भेष फकीरी जे करें, मन नहिं आवै हाथ।

दिल फकीर जे हो रहे, साहेब तिनके साथ॥7॥


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