जो तेरे घट प्रेम है, तो कहि कहि न सुनाय।
अन्तरजामी जानि हैं, अन्तरगत के भाय॥1॥
सुमिरन ऐसा कीजिए, दूजा लखै न कोय।
होंठ न फरकत देखिये, प्रेम राखिये गोय॥2॥
माला जपौं, न कर जपौं, जिह्वा जपौं न राम।
सुमिरन मेरा हरि करै, मैं पाया विश्राम॥3॥
कहैं मलूक अब कजा न करिहौं दिल ही सौं दिल लाया।
मक्का हज हिये में देखा, पूरा मुरसिद पाया॥4॥
तौजी और निमाज न जानूँ, ना जानूँ धरि रोजा।
बाँग जिकर तबही से बिसरी, जब से यह दिल खोजा॥5॥
ना वह रीझै जप तप कीन्हें-ना श्रातस को जारे।
ना वह रीझै धोती टाँगै, ना काया के पखारे॥6॥
दुखिया जन कोइ दूलिये, दुखिये अति दुख होय।
दुखिया रोय, पुकारी है, सब गुड़ माटी होय॥7॥
काम क्रोध सब त्यागि के जो रामै गावै।
दास मलूका यूँ कहैं तेहि अलख लखावै॥8॥
आपा मेटि न हरि भजे, तेइ नर डूबे।
हरि का मर्म न पाइया, कारन कर ऊबे॥9॥
करें भरोसा पुत्र का, साहिब बिसराया।
डूब गए तरबोर को, कहुँ खोज न पाया॥10॥