कबीरदास के अनमोल दोहे - 2

राम रहीम एक हैं, नाम धराया दोय।

कहैं कबीर दो नाम सुनि, भरम पड़ो मति कोय॥1॥


पतिबरता मैली भली, काली, कुचिल, कुरूप।

पतिबरता के रूप पर, बारौं कोटि स्वरूप॥2॥


पतिबरता मैली भली, गले काँच को पोत।

सब सखियन में यों दिपै, ज्यों रवि ससि की जोत॥3॥


छिन ही चढ़े छिन ही उतरे, सो तो प्रेम न होय।

आघात प्रेम पिंजरे बसे, प्रेम कहवे सोय॥4॥


आंखिड़ल्या झाईं पड़ी, पंथ निहारि-निहारि।

जीभड़लया छाला पड़या, नावं पुकारि-पुकारि॥5॥


बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार।

दुहुं चूका रीता पड़ैं, वाकूं वार न पार॥6॥


तिनहूँ को सुकियाह में, गनैं सुकवि सिरमौर।

बर्तन सब न्यारे भये, पानी सब में एक॥7॥


प्रेम जगावै विरह को, विरह जगावै पीउ।

पीउ जगावै जीव को, जोइ पीउ सोई जीउ॥8॥


चतुराई पोपट पढ़ी, परि सो पिंजर माहि।

फिर परमोधे और को, आपन समुझेये नाहि॥9॥


साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।

सार-सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय॥10॥


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