गगन दमामा बाजिया, पड्या निसानैं घाव।
खेत बुहार्या सूरिमै, मुझ मरणे का चाव॥1॥
साईं आगे साँच है, साईं साँच सुहाय।
चाहे घोले केसर रस, चाहे घोंट मुंडाय॥2॥
नहीं शीतल है चन्द्रमा, हिम नाहि शीतल होय।
कबिरा शीतल संत जन, नाम ताने ही होय॥3॥
कबिरा माया पापिनी, हरि से करे हराम।
मुख कर आई कुमति, कहा न तेई राम॥4॥
कुल केला कुल उबरे, कुल राख्या कुल जाए।
राम निकुल कुल भेट ले, सब कुल रहा समाए॥5॥
कबिरा सुत्ता क्या करे, जागन जपे मुरारि।
इक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारि॥6॥
ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार।
हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार॥7॥
साहिब तेरी साहिबी, सब घाट रही समाए।
ज्यों मेहंदी के पात में, लाली लखी न जाए॥8॥
झूठ बात नहीं बोलिए, जब लगि पार बसाए।
अहो कबीर साच कहूं, आवागमन नसाए॥9॥
भलि भलि सब कोई कहे, रही क्षमा ठहराय।
कह कबीर सीतल भया, गई जू अगन बुझाय॥10॥