कबीरदास के अनमोल दोहे - 33

जो जल बाढ़े नांव में, घर में बाढ़े दाम।

दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानो काम॥1॥


गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट।

अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥2॥


सांची कहु तो बिके नही, झुठ कहु बिक जाय।

दो टके की फागड़ि, पाँच टके में जाये॥3॥


ज्ञानी ज्ञाता बहु मिले, पंडित कवि अनेक।

राम रटा निद्री जिता, कोटि मघ्य ऐक॥4॥


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