कबीरदास के अनमोल दोहे - 6

बडा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।

पंथी को छाया नही, फल लागे अति दूर॥1॥


आवत गारी एक है, उलटत होय अनेक।

कब कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक॥2॥


भक्ति बिगाड़ी कामिया, इन्द्रीन केरे स्वाद।

हीरा खोया हाथ सों, जन्म गंवाया बाद॥3॥


कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय।

खीर खीड भोजन मिलै, साकट संग न जाय॥4॥


खूब खांड है खीचड़ी, माहि पड्याँ टुक लूण।

पेड़ा रोटी खाइ करि, गल कटावे कूण॥5॥


कोई निन्दोई कोई बंदोई, सिंघी स्वान रु स्यार।

हरख विशाद ना केहरि, कुंजर गज्जन हार॥6॥


कहे कबीर कैसे निबाहे, केर बेर को संग।

वह झूमत रस आपनी, उसके फाटत अंग॥7॥


तीरथ गए ते एक फल, संत मिले फल चार।

सतगुरू मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार॥8॥


निंदक नियरे राखीए, आँगन कुटि छबाय।

बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करें सुहाय॥9॥


आए हैं सो जाएंगे, राजा रंक फ़कीर।

इक सिंहासन चढ़ चले, एक बंधे जंजीर॥10॥


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