कबीरदास के अनमोल दोहे - 16

घट माँहैं औघट लह्या, औघट माँहैं घाट।

कहि कबीर परचा भया, गुरू दिखाई बाट॥1॥


पांनीं मांहीं परजली, भई अपरबल आगि।

बहती सरिता रहि गई, मच्छ रहे जल त्यागि॥2॥


गुरु दाधा चेला जला, बिहरा लागी आगि।

तिनका बपुरा ऊबरा, गलि पूरे के लागि॥3॥


मारा है जे मरैगा, बिन सर थोथी भालि।

पड़ा पुकारै ब्रिछ तरि, आजि मरै कै काल्हि॥4॥


दीपक पावक आँनिया, तेल भिआना संग।

तीन्यँ मिलि करि जोइया, उड़ि उड़ि पड़ैं पतंग॥5॥


केसौ कहि कहि कूकिए, नाँ सोइय असरार ।

राति दिवस कै कूकनै, कबहुँक लगे पुकार ॥6॥


कबीर निरभै राम जपु, जब लगि दीवै बाति।

तेल धटै बाती बुझै, सोवैगा दिन राति ॥7॥


तूँ तूँ करता तू भया, मुझ मैं रही न हूँ ।

वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तूँ ॥8॥


कबीर कहता जात है, सुनता है सब कोइ।

राम कहें भल होइगा, नहिं तर भला न होइ॥9॥


निहचल निधि मिलाइ तत, सतगुर साहस धीर।

निपजी मैं साझी घना, बाँटे नहीं कबीर॥10॥


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