गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान।
बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥1॥
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥2॥
कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय।
जनम - जनम का मोरचा, पल में डारे धोया॥3॥
मान बड़ाई देखि कर, भक्ति करै संसार।
जब देखैं कछु हीनता, अवगुन धरै गंवार॥4॥
कबीर पढ़ना दूर करु, पोथी देहु बहाइ।
बाबन अक्षर सोधि के, राम नाम लौ लाइ॥5॥
मीयां तुम्ह सौ बोल्यां, बनि नहिं आवै।
हम मसकीन खुदाई बंदे, तुम्ह राजस मनि भावै॥6॥
अलह अवलि दीन का साहिब, जोर नहीं फुरमाया।
मुरिसद पीर तुम्हारै है को, कहौ कहां थैं आया॥7॥
रोजा करैं निवाज गुजारैं, कलमैं भिस्ति न होई।
सतरि काबे इक दिल भींतरि, जे करि जांनै कोई॥8॥
आपणपौ न सराहिये, और न कहिये रंक।
नां जांणौ किस व्रिष तलि, कूड़ा होइ करंक॥9॥
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।
पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट॥10॥