कबीरदास के अनमोल दोहे - 11

कागद करो नाव दी, पानी केरा संग।

कहि कबीर कैसे फिरूं, पंच कुसंगी संग॥1॥


कबिरा सुत्ता क्या करे, गुरू गोबिन्द के जाए।

तेरे सर पर जब खड़ा, खर्च करेगा खाय॥2॥


पिया पीया रस जानिए, उतारे नहीं खुमार।

नाम अमल पाता रहे, पीय अमी रस सार॥3॥


जल में बसे कुमोदिनी, चंदा बसे आकास।

जो है जाकी भावना, सो तांही के पास॥4॥


कहै हिन्दु मोहि राम पिआरा, तुरक कहे रहिमाना।

आपस में दोऊ लरि-लरि मुए, मरम न कोऊ जाना॥5॥


एक बूंद से सृष्टि रची है, को ब्रह्ममन को सुद्र।

हमहुं राम का, तुमहुं राम का, राम का सब संसार॥6॥


जामें हम सोही हमही में, नीर मिलै जल एक हुवा।

यौं जानै तो कोई न मरिहै, बिन जानें पै बहुत मुवा॥7॥


सबै रसायन मैं किया, हरि सा और ना कोई।

तिल इक घट में संचरे,तौ सब तन कंचन होई॥8॥


बकरा मारि भैंसा पर धावै, दिल में दर्द न आई।

आतमराम पलक में दिन से, रुधिर की नदी बहाई॥9॥


कबीर का तू चित वे, तेरा च्यता होई।

अण च्यता हरि जो करै, जो तोहि च्यंत नहो॥10॥


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