रहिमन रहिला की भले, जो परसै चित लाय।
परसत मन मैला करे, सो मैदा जरि जाय॥1॥
रौल बिगाड़े राज नैं, मौल बिगाड़े माल ।
सनै सनै सरदार की, चुगल बिगाड़े चाल॥2॥
कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगती बैठिए, तैसोई फल दीन ॥3॥
कबहुं देखावै जौहरनि, हंसि हंसि मानकलाल।
कबहुं चखते च्वै परै, टूटि मुकुत की माल॥4॥
सजल नैन वाके निरखि, चलत प्रेम सर फूट।
लोक लाज उर धाकते, जात समक सी छूट॥5॥
संपति भरम गंवाइ कै, हाथ रहत कछु नाहिं।
ज्यों रहीम ससि रहत है, दिवस अकासहुं मांहि॥6॥
चिंता बुद्धि परखिए, टोटे परख त्रियाहि।
सगे कुबेला परखिए, ठाकुर गुनो किआहि॥7॥
एक उदर दो चोंच है, पंछी एक कुरंड।
कहि रहीम कैसे जिए, जुदे जुदे दो पिंड॥8॥
जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय ।
ताको बुरा न मानिए, लेन कहां सो जाय॥9॥
कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम।
काकी महिमा नहीं घटी, पर घर गए रहीम॥10॥