रहीमदास के अनमोल दोहे - 10

रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था। संवत 1556 में लाहौर में जन्मे रहीम का नामकरण सम्राट अकबर ने किया था।

जो रहीम जग मारियो, नैन बान की चोट।

भगत भगत कोउ बचि गए, चरन कमल की ओट॥1॥


परस पाहन की मनो, धरे पूतरी अंग ।

क्यों न होय कंचन बहू, जे बिलसै तिहि संग॥2॥


कैथिनि कथन न पारई, प्रेम कथा मुख बैन।

छाती ही पाती मनों, लिखै मैन की सैन॥3॥


गाहक सो हंसि बिहंसि कै, करत बोल अरु कौल।

पहिले आपुन मोल कहि, कहत दही को मोल॥4॥


हियरा भरै तबाखिनी, हाथ न लावन देत।

सुखा नेक चटवाइ कै, हड़ी झाटि सब देत॥5॥


हाथ लिए हत्या फिरे, जोबन गरब हुलास।

धरै कसाइन रैन दिन, बिरही रकत पिपास॥6॥


सीस चूंदरी निरख मन, परत प्रेम के जार ।

प्रान इजारै लेत है, वाकी लाल इजार ॥7॥


जद्यपि नैननि ओट है, बिरह चोट बिन घाई।

पिय उर पीरा न करै, हीरा-सी गड़ि जाई॥8॥


रूप रंग रति राज में, खत रानी इतरान ।

मानो रची बिरंचि पचि, कुसुम कनक में सान ॥9॥


यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय।

ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर नाय॥10॥


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