रहीमदास के अनमोल दोहे - 7

रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था। संवत 1556 में लाहौर में जन्मे रहीम का नामकरण सम्राट अकबर ने किया था।

राम नाम जान्यो नहीं, जान्यो सदा उपाधि।

काही रहीम तीही आपुनि, जनम गंवायो बाधि॥1॥


जेहि रहीम मन आपनो, कीन्हो चारु चकोर।

निसि-वासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर॥2॥


रहिमन कोऊ का करै, ज्वारी,चोर,लबार।

जो पत-राखनहार है, माखन-चाखनहार॥3॥


प्रीतम छबि नैनन बसी, पर-छबि कहां समाय।

भरी सराय रहीम लखि, पथिक आप फिर जाय॥4॥


कहा करौं वैकुण्ठ लै, कल्पबृच्छ की छांह।

रहिमन ढाक सुहावनो, जो गल पीतम-बाँह॥5॥


जे सुलगे ते बुझ गए, बुझे ते सुलगे नाहिं।।

रहिमन दाहे प्रेम के, बुझि-बुझिकैं सुलगाहिं॥6॥


यह न रहीम सराहिये, देन-लेन की प्रीति।

प्रानन बाजी राखिये, हार होय कै जीत॥7॥


राम नाम जान्यो नहीं, भई पूजा में हानि।

कहि रहीम क्यों मानिहैं, जम के किंकर कानि॥8॥


जो रहीम करबौ हुतो, ब्रज को इहै हवाल।

तो काहे कर पर धरयो, गोवर्धन गोपाल॥9॥


हरि रहीम ऐसी करी, ज्यों कमान सर पूर।

खेंचि आपनी ओर को, डारि दियौ पुनि दूर॥10॥


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