रहीमदास के अनमोल दोहे - 6

रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था। संवत 1556 में लाहौर में जन्मे रहीम का नामकरण सम्राट अकबर ने किया था।

अनुचित उचित रहीम लधु, करहिं गन के जोर।

उयों साँसे के संयोग ते, पचवत आग चकोर॥1॥


बन याचकता गो, की छोट है जात।

नारायण को दू को, बावन अंगुर पात॥2॥


रहिमन अपने गोत को, सबै चहत उत्साह।

मृग उछरत आकास को, भूमी खनन बराह॥3॥


रहिमन अपने पेट सों, बहुत कहयो समुझाय।

जो तू अनखाए रहे, तो सों को अनखाय॥4॥


रहिमन इक दिन वे रहे, बीच न सोहत हार।

वायु जो ऐसी बह गई, बीचन परे पहार॥5॥


रहिमन को कोट का कर तेरी, छोर, लबार।

जो पत-राखब-हार हैं, माखन-चाखन-हार॥6॥


रहिमन प्रीति सराहिये, मिले होत रंग दून।

ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून॥7॥


वहै प्रीत नहिं रीति वह, नहीं पाछिलो हेत।

घटत-घटत रहिमन घटै, ज्यों कर लीन्हे रेत॥8॥


अमरबेली बिनु मूल की, प्रतिपलट है ताहि।

रहिमन ऐसे प्रभुहि ताजी, खोजत फिरिए कही॥9॥


मान सहित विष खाय कै, सम्भु भये जगदीस।

बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो सीस॥10॥


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