रहीमदास के अनमोल दोहे - 2

रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था। संवत 1556 में लाहौर में जन्मे रहीम का नामकरण सम्राट अकबर ने किया था।

रहिमन कुटिल कुठार क्यों, करि बरत है टूक।

चलन के कसकरह रहे, समय चूल की हुक॥1॥


जिहि रहीम तन मन लियो, कियो हिए बिच भौन।

तासों दु:ख-सुख कहन की, रही बात अब कौन॥2॥


मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय।

रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय॥3॥


रहिमन पैदा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल।

बीलछत पाव पिपीलिको, लोग लड़ावत बैल॥4॥


धनि रहीम गति मीन की, जल बिछुरत जिय जाय।

जियत कंज तजि अनत बसि, कहा भौर को भाय॥5॥


रहिमन मुश्किल आ पड़ी, टेढ़े दऊ काम।

सीधे से जग न मिले, उलटे मिले ना राम॥6॥


रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ।

जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ॥7॥


रहिमन गली है सांकरी, दूजो न ठहराहिं।

आपु अहैं तो हरि नहीं, हरि आपुन नाहि॥8॥


छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।

कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥9॥


एकहि साधै सब सधैए, सब साधे सब जाय।

रहिमन मूलहि सींचबोए, फूलहि फलहि अघाय॥10॥


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