आप न काहू काम के, डार पात फल फूल।
औरन को रोकत फिरै, रहिमन पेड़ बबूल॥1॥
ये रहीम दर दर फिरहिं, मांगि मधुकरी खाहिं।
यारो यारी छांड़ दो, वे रहीम अब नाहिं॥2॥
रहिमन यह तन सूप है, लीजै जगत पछोर।
हलुकन को उड़ि जान है, गुरुए राखि बटोर॥3॥
साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान।
रहिमन सांचे सूर को, बैरी करे बखान॥4॥
यों रहीम सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत।
ज्यों बड़री अंखियां निरखि, अंखियन को सुख होत॥5॥
पीवत बाको प्रेमरस, जोइ सो बस होइ।
एक खरै घूमत रहै, एक परे मत खोइ॥6॥
राज करत रजपूतनी, देस रूप को दीप।
कर घूंघट पर ओट कै, आवत पियहि समीप ॥7॥
भाटिन भटकी प्रेम की, हर की रहै न गेह।
जोवन पर लटकी फिरै, जोरत वरह सनेह॥8॥
भटियारी उर मुंह करै, प्रेम पथिक की ठौर।
धौस दिखावै और की, रात दिखावै और॥9॥
पाटम्बर पटइन पहिरि, सेंदुर भरे ललाट।
बिरही नेकु न छाड़ही, वा पटवा की हाट॥10॥