रहीमदास के अनमोल दोहे - 13

रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था। संवत 1556 में लाहौर में जन्मे रहीम का नामकरण सम्राट अकबर ने किया था।

रहिमन मोहिं न सुहाय, अमी पआवै मान बनु ।

बरु वष देय बुलाय, मान-सहत मरबो भलो ॥1॥


सबै कहावैं लसकरी, सब लसकर कहं जाय ।

‘रहिमन’ सेल्ह जोई सहै, सोई जगीरे खाय ॥2॥


रूप कथा, पद, चारुपट, कंचन, दोहा, लाल।

ज्यों-ज्यों निरखत सूक्ष्म गति, मोल रहीम बिसाल॥3॥


बरु रहीम कानन भलो, वास करिय फल भोग।

बंधु मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग॥4॥


राम न जाते हरिन संग, सीय न रावन-साथ ।

जो रहीम भावी कतहुँ, होत आपने हाथ ॥5॥


रहिमन विद्या बुद्धि नहिं, नहीं धरम जस दान।

भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूँछ-विषान॥6॥


रहिमन बहु भेषज करत, व्याधि न छाँड़त साथ।

खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ॥7॥


रहिमन निज मन की बिथा, मनही राखो गोय।

सुनि अठिलैहैं लोग सब , बाँटि न लैहैं कोय॥8॥


रहिमन निज सम्पति बिना, कोउ न विपति-सहाय।

बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय॥9॥


रहिमन जो रहिबो चहै, कहै वाहि के दाव।

जो बासर को निसि कहै, तौ कचपची दिखाव॥10॥


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