रहीमदास के अनमोल दोहे - 5

रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था। संवत 1556 में लाहौर में जन्मे रहीम का नामकरण सम्राट अकबर ने किया था।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।

जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय॥1॥


खैर खून खाँसी खुसी, बैर प्रीति मदपान।

रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥2॥


चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।

जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह॥3॥


जे गरीब पर हित करै, ते रहीम बड़लोग।

कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥4॥


रहिमन वे नर मर गये, जे कछु मांगन जाहि।

उतने पाहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥5॥


बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥6॥


रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।

जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥7॥


बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।

औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥8॥


मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।

फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय॥9॥


रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गई सरग पताल।

आपु तो कहि भीतर भई, जूती खात कपाल॥10॥


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