रहीमदास के अनमोल दोहे - 3

रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था। संवत 1556 में लाहौर में जन्मे रहीम का नामकरण सम्राट अकबर ने किया था।

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराए।

प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाए ॥1॥


आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।

ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥2॥


अनुचित वचन न मानिए, जदपि गुराइस गाढ़ि।

है रहीम रघुनाथ तें, सुजस भरत को बाढ़ि॥3॥


रामचरितमानस बिमल, संतन जीवन प्रान।

हिन्दुवन को बेद सम, जवनहिं प्रगट कुरान॥4॥


सुरतिय नरतिय नागतिय, सब चाहत अस होय।

गोद लिए हुलसी फिरैं, तुलसी सों सुत होय॥5॥


समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।

सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात॥6॥


रहिमन कठिन चितान, ते विंतर करे चित चेत।

चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत॥7॥


रहिमन कबहुं बड़ने के, नाहिं गर्व को लेस।

भार धरैं संसार को, तऊ कहावत सेस॥8॥


दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।

ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमट कूदि चल जाहिं॥9॥


पावस देखि रहीम मन, कोईल साढ़े मौन ।

अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन ॥10॥


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