मंत्र उपनिषद ब्रह्माण्हू बहु पुराण इतिहास।
जवन जराए रोष भरी करी तुलसी परिहास॥1॥
साखी सबद दोहरा, कहि कहिनी उपखान।
भगति निरूपहिं निंदहि बेद पुरान॥2॥
काह कहौं छवि आजुकि भले बने हो नाथ।
तुलसी मस्तक तव नवै धरो धनुष शर हाथ॥3॥
एक भरोसो एक बल एक आस विश्वास।
एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास॥4॥
बंदऊ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु वचन रविकर निकर॥5॥