स्वपच सबर खस जमन जड़, पाँवर कोल किरात।
राम कहत पावन परम, होत भुवन विख्यात॥1॥
बांध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस।
सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस॥2॥
राम सो बड़ो है कौन, मोंसों कौन छोटों।
राम सो खरो है कौन, मोंसों कौन खोटो॥3॥
एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास।
एक राम-घनश्याम हित, चातक तुलसीदास॥4॥
बचन वेष क्या जानिए, मनमलीन नर नारि।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि॥5॥
असन-बसन सुत नारि सुख, पापिह के घर होय।
संत समागम राम धन, तुलसी दुर्लभ होय॥6॥
चित्रकुट के घाट पर भई संतन की भीर।
तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुबीर॥7॥
अनुचित उचित विचारू तजि जे पालहिं पितु बैन।
ते भाजन सुख सुजस के बसहिं अमरपति ऐन॥8॥
खेलत बालक ब्याल संग, मेला पावक हाथ।
तुलसी सिसु पितु मातु ज्यों, राखत सिय रघुनाथ॥9॥
राम नाम जपते अत्रि मत गुसिआउ।
पंक में उगोहमि अहि के छवि झाउ॥10॥