दादू साचा गुर मिल्या, साचा दिया दिखाइ।
साचे सौं साचा मिल्या,साचा रह्या समाइ॥1॥
रतन पदारथ माणिक मोती, हीरौं का दरिया।
चिंतामणि चित राम धन, घट अमृत भरिया ॥2॥
दादू इस संसार मैं, ये द्वै रतन अमोल।
इक साईं इक संतजन, इनका मोल न तोल॥3॥
मेरा बैरी मैं मुवा, मुझे न मारै कोई।
मैं ही मुझकौं मारता, मैं मरजीवा होई॥4॥
खुसी तुम्हारी त्यूँ करौ, हम तौ मानी हारि।
भावै बंदा बकसिये, भावै गहि करि मारि॥5॥
दादू मीठा राम रस, एक घूँट कर जाऊँ।
पुणग न पीछे को रहे, सब हिरदै मांहि समाऊँ॥6॥
चिड़ी चंचु भरि ले गई, नीर निघट नहिं जाइ।
ऐसा बासण ना किया, सब दरिया मांहि समाइ॥7॥
दादू माया का खेल देखि करि, आया अति अहंकार।
अंध भया सूझे नहीं, का करिहै सिरजनहार॥8॥
दादू हरि रस पीवताँ, कबँ अरुचि न होई।
पीवत प्यासा नित नवा, पीवण हारा सोई॥9॥
माखन मन पांहण भया, माया रस पीया।
पाहण मन मांखण भया, राम रस लीया॥10॥